लेखनी कहानी -10-Dec-2022
💓💓💓प्रियसी 💓💓💓
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वह जन्नत की हूर है।
हंसती है तो लगता फुलवारी मुस्कुरा रही है।
उसकी मुस्कान पूर्णिमा का चांद है।
चलती है तो लगता हिरनी सी चाल है ।
लब ऐसे जैसे गुलाब की पंखुड़ी है।
आंखें उसकी मृग नैनी सी सुंदर है।
चेहरे का नूर ऐसा जैसे चौहदवी का चांद हो।
उसकी भाव भंगिमा मयूरी नाच सी है।
वह सुंदरता की अमूर्त रूप है।
प्रियसी के मेरे मन आंगन में पदार्पण से,
जीवन हजारों सर्च लाइट सा रोशन हो गया।
मेरी प्रियसी मेरा जीवन का संतोष है।
संतोष रूपी प्रियसी के पदार्पण से जीवन में 'विजय' रूपी मुस्कान है।
हे संतोष रूपी प्रियसी 'संतोष' ,
यह कविता तुझको समर्पित है।
मेरे जीवन में आगमन से पतझड़ रूपी
जीवन में आ गई बहार है।
विजय पोखरणा "यस"
10.12.2022
Gunjan Kamal
17-Dec-2022 05:50 PM
बेहतरीन
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Mahendra Bhatt
11-Dec-2022 09:01 AM
बहुत ही सुन्दर
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Pranali shrivastava
10-Dec-2022 07:30 PM
शानदार
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